राज्य निर्माण के पश्चात् छत्तीसगढ़ राज्य की औद्योगिक नीति का अध्ययन

 

राजेश अग्रवाल1  आशीष दुबे2

1गुरूकुल महिला महाविद्यालयए रायपुर

2दुर्गा महाविद्यालयए रायपुर

 

छत्तीसगढ़ राज्य में खनिज संसाधनों की उपलब्धता तथा औद्योगिकरण के लिए अनुकूल वातावरण के कारण औद्योगिक विकास की संभावनाएँ विद्यमान है संसाधनों के परिपूर्णता के बाद भी छत्तीसगढ़ औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय तथा स्थानीय स्तर पर अनेक उद्योग विद्यमान है जैसे - भिलाई स्पात संयंत्र, सीमेन्ट उद्योग, खनन उद्योग, एन.टी.पी.सी. एल्युमिनियम आदि पर आधारित संयंत्र। प्रदेश में वनोपज पर आधारित अनेक उद्योग भी स्थापित है जो जनजातियों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य कृषि प्रधान होने के कारण कृषि आधारित उद्योगों के लिए भी विकास की सम्भावनाएँ विद्यमान है।

द्वितीय नियोजन काल से छत्तीसगढ़ में नियोजित औद्योगिक विकास की प्रक्रिया का प्रारंभ हुआ इससे पूर्व यहाँ बड़े उद्योगों में राजनांदगाँव में 1896 में स्थापित बंगाल, नागपुर, काॅटन मिल एवं रायगढ़ में सन् 1935 में स्थापित जूट मिल ही थे। भारत के अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में उद्योगों का विकास अत्यन्त धीमा रहा। ब्रिटिश शासन काल में क्षेत्र के औद्योगिक विकास के लिए विशेष प्रयास नहीं किया गया। अंचल छोटे-छोटे रियासतों में विभक्त था तथा वे स्वावलंबी इकाई के रूप में ब्रिटिश अधीनता में कार्य करती थी तथा इन रियासतों का ध्यान प्रदेश के आर्थिक विकास में नहीं था। मध्य प्रांत के अंतर्गत अंचल के संसाधनों का उपयोग सीमित था विशेष कर वन संपदा का ही दोहन किया जाता था किन्तु वनों पर आधारित उद्योगों का विकास नहीं हुआ था। 1956 में पुनर्गठित मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया जिसमें बरार को पृथक कर छत्तीसगढ़ के 14 रियासतों को सम्मिलित कर लिया गया तथा इस क्षेत्र को मध्यप्रदेश का पूर्वांचल कहा गया जो वनों से आच्छादित आदिवासी बहुल विकास से दूर पिछड़ा क्षेत्र था। प्रदेश में औद्योगीकरण का जन्म द्वितीय योजना काल से प्रारंभ हुआ था इस योजनाकाल में दुर्ग जिले में लौह भण्डार की अधिकता के कारण भिलाई स्पात संयंत्र की स्थापना हुई जो वर्तमान में देश का महत्वपूर्ण स्पात संयंत्र है। द्वितीय योजना काल में ही रायपुर में औद्योगिक क्षेत्र का निर्माण हुआ। द्वितीय योजना में आधारभूत ढांचे के विकास को विशेष महत्व दिया गया जिससे देश में भारी उद्योगों की स्थापना प्रारंभ हो सकी साथ ही ग्रामीण उद्योगों की ओर भी ध्यान दिया गया इसके लिए खादी ग्रामोद्योग संस्थान की स्थापना 1960-61 में की गई जो लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास में योगदान दे सके रायपुर में भी इसी नियोजन काल में खादी ग्रामोद्योग संस्थान की शाखा की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से प्रदेश में लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास के लिए योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। तृतीय नियोजन काल में 1965 में जामुल सीमेण्ट संयंत्र की स्थापना दुर्ग में किया गया तथा प्रदेश में औद्योगीकरण की गति बढ़ाने के लिए .प्र. सरकार ने चार औद्योगिक केन्द्र विकास निगम स्थापित किये थे रायपुर इनमें से एक था। वर्ष 1967-69 योजनाकाश काल था इस अवधि में रेल्वे बैगन वर्कशाप की स्थापना रायपुर में 1967-68 में हुई। 1965 में बिलासपुर में कोरबा के बाॅक्साइड भण्डारों के आधार पर बाल्को एल्युमिनियम संयंत्र की स्थापना किया गया जिसने 1972 में उत्पादन प्रारंभ किया। चैथी पंचवर्षीय योजना में प्रदेश के औद्योगिक विकास की तुलना में अंचल का औद्योगिक विकास पिछड़ा हुआ था इसी योजना काल में राजनांदगाँव के कपड़ा मिल का आधुनिकीकरण .प्र. टेक्सटाइल्स कार्पोरेशन के द्वारा किया गया। पांचवी योजनाकाल में औद्योगिक विकास पर विशेष बल दिया गया। छत्तीसगढ़ में इस योजना का लक्ष्य क्षेत्र के औद्योगिक विकास दर में वृद्धि के साथ औद्योगिक उत्पादन तथा उत्पादन क्षमता में वृद्धि तथा उद्योगों की दृष्टि से औद्योगिक असमानता को कम कर रोजगार के नये मार्ग खोलना था। उक्त लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बीस सूत्रीय कार्यक्रम चलाए गये।

 

इस नियोजन काल में 1978 में एन.टी.पी.सी. की निर्माण प्रक्रिया का प्रारंभ किया गया। 1978 से 1980 तक तीन एक वर्षीय योजना के बाद रायपुर, दुर्ग एवं बिलासपुर में औद्योगिक केन्द्रों का विकास हुआ तथा निजी क्षेत्र के वृहद तथा मध्यम उद्योगों की संख्या उत्पादन क्षमता तथा रोजगार में वृद्धि हुई। इस अवधि में अनेक नए उद्योग भी विकसित हुए जिनमें लकड़ी के समान, उर्वरक एवं रसायन, हल्के मशीन औजार, प्लास्टिक तथा रबर उद्योग आदि सम्मिलित है। 1977 में औद्योगिकीकरण की नीति में परिवर्तन होने से लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास को विशेष दिशा प्राप्त हुई तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई।

 

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) में केन्द्रीय सरकार के उदारीकरण की नीति के आधार पर 1993 में नई औद्योगिक नीति का निर्माण किया। यह योजना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से आर्थिक परिवर्तनों को ध्यान रखकर इस औद्योगिक नीति का निर्माण किया गया। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य देश में औद्योगिक विकास की गति बढ़ाना, अधिकाधिक विदेशी पूँजी को औद्योगिकरण के लिए आकर्षित करना, क्षेत्रीय विकास में संतुलन स्थापित करना तथा रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन करना था। इस नीति के परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ में तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। रायपुर में प्लास्टिक काम्प्लेक्स तथा ऐग्रो काम्प्लेक्स स्थापित हुए हैं। इस अवधि में प्रदेश में कृषिगत तथा वनों पर आधारित उद्योगों का विकास हुआ तथा कोसा एवं रेशम उद्योग के विकास में छत्तीसगढ़ अँचल को अलग पहचान प्राप्त हुई।

 

छत्तीसगढ़ में लोहा, सीमेण्ट, एल्युमिनियम, विद्युत उत्पादन तथा लौह अयस्क और कोयला उत्पादन क्षेत्र में सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना से प्रदेश में औद्योगिक विकास की गति में तेजी आई। छत्तीसगढ़ क्षेत्र लौह उद्योग तथा स्पात उद्योगों के स्थापना एवं विकास के लिए आदर्श है छत्तीसगढ़ में भिलाई स्टील प्लाण्ट के अतिरिक्त निजी क्षेत्रों में 6 स्पंज आयरन संयंत्र (पूँजी निवेश 112000 लाख रूपये, उत्पादन क्षमता 13 लाख मी. टन), लगभग 85000 मी. टन क्षमता के 120 रोे-रोलिंग मिल, पिग आयरन संयंत्र (पूंजी निवेश 39900 लाख रूपये, उत्पादन क्षमता 500000 मी. टन) एक एच.आर. स्ट्रिप संयंत्र (पूँजी निवेश 23,880 लाख रूपये उत्पादन क्षमता 1,70,000 मी. टन) तथा अनेक लघु स्पात संयंत्र स्थापित हो चुके हैं। सीमेण्ट उत्पादन में प्रायः देश के सभी अग्रणी औद्योगिक समूहों ने इस क्षेत्र में सीमेण्ट संयंत्र की स्थापना किया है। पूरे देश का 15 से अधिक इस्पात तथा 10 से अधिक सीमेण्ट का उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है। क्षेत्र में गैर परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों से भी विद्युत उत्पादन प्रारंभ हो चुका है। स्टील कास्टिंग फेब्रिकेशन तथा इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में भिलाई तथा उरला औद्योगिक क्षेत्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण की शत प्रतिशत निर्यातक इकाई भी स्थापित हुई है जहाँ विभिन्न जलों के कन्सन्ट्रेट तैयार होते हैं। अंचल में खाद निर्माण के दो कारखाने हैं जहाँ सिंगल सुपर फास्फेट का उत्पादन होता है। इन कारखानों से बड़ी संख्या में अंचल के कृषकों के आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। निजी क्षेत्र में 3,720 मेगावाट के विद्युत उत्पादन संयंत्र की स्थापना भी छत्तीसगढ़ में प्रस्तावित है। अंचल में 700 से अधिक राईस मिलें स्थापित है जिनकी मिलिंग क्षमता लगभग दस लाख मीट्रिक टन अरवा तथा 18 लाख टन उसना चावल की है। छत्तीसगढ़ से लगभग 250 करोड़ रूपये मूल्य का चावल निर्यात होता है।

 

औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना तथा विकास के लिए 1981 में मध्य प्रदेश औद्योगिक केन्द्र विकास निगम का गठन किया गया जिसका एक मुख्यालय रायपुर में था। निगम के रायपुर मुख्यालय का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ था निगम का प्रमुख कार्य अंचल में वृहद, मध्यम तथा लघु उद्योगों की स्थापना एवं विकास में सहायक तथा उत्प्रेरक की भूमिका निभाना था राज्य निर्माण के पश्चात् इस निगम का नाम छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम कर दिया गया। इस निगम के द्वारा रायपुर, बिलासपुर तथा दुर्ग जिलों में औद्योगिक विकास केन्द्रों की स्थापना की गयी जहाँ उद्योगों के स्थापना एवं विकास के लिए सम्पूर्ण आधारभूत सुविधाएँ जैसे सड़क, बिजली, पानी आदि निगम द्वारा उपलब्ध कराए गये। ये औद्योगिक विकास केन्द्र रायपुर जिले में उरला तथा सिलतरा, बिलासपुर जिले में सिरगिट्टी तथा दुर्ग जिले में बोरई में स्थापित है इन केन्द्रों के स्थापना से प्रदेश के औद्योगिक विकास को नई दिशा प्राप्त हुई है।

 

राज्य निर्माण के पश्चात् राज्य में औद्योगिक विकास को दिशा प्रदान करने के लिए वर्ष 2001 में राज्य की प्रथम औद्योगिक नीति बनाई गयी इस नीति के अन्तर्गत सर्वप्रथम अधोसंरचना के निर्माण तथा विकास पर विशेष बल दिया गया जिसके अन्तर्गत जगदलपुर में कृषि औद्योगिक पार्क एवं राजनांदगाँव में खाद्य पार्क की स्थापना, भिलाई में साफ्टवेयर औद्योगिक पार्क की स्थापना सभी जिलों में औद्योगिक विकासक्षेत्र का निर्माण तथा नियोजन, बस्तर एवं सरगुजा जिले का इको पर्यटन जिलों के रूप में विकास, प्रदेश में ड्राई पोर्टो की स्थापना प्रदेश में औद्योगिक पार्कों की स्थापना, भण्डारण व्यवस्था के विकास के लिए अधोसंरचना के निर्माण की नीति निश्चित किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य के औद्योगिक विकास नीति 2001 के अंतर्गत निर्धारित नीतियों में प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों के अनुकुलतम उपयोग, इको फ्रेण्डली उद्योगों का विकास, लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास विपणन सहायता, कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन उद्यानिकी, हर्बल उद्योगों के विकास, निर्यात आधारित उद्योगों के प्रोत्साहन प्रोत्साहन औद्योगिक पार्कों, निर्यात प्रोत्साहन प्रक्षेत्र तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों का विकास, पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिक विकास पर बल, इसके लिए अति लघु, लघु सहायक एवं आक्सिलरी उद्योगों सहित सेवा क्षेत्र की इकाइयों का विकास, बीमार इकाइयों का पुर्नवास, ऊर्जा स्टील एल्यूमिनियम सीमेण्ट उद्योगों के विकास पर विशेष ध्यान, निजी क्षेत्र में हीरे, बहुमूल्य रत्न एवं पत्थरों के प्रसंस्करण के प्रोत्साहन थ्रस्ट सेक्टर की पहचान एवं विकास, गैर परम्परागत उर्जा क्षेत्रों का विकास सभी सहायक उद्योगों के विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के साथ बेहतर समन्वय, लघु एवं सहायक उद्योगों के विकास के लिए इंडस्ट्रियल फेसिलिटेशन काउंसिल का गठन, वृहद्, औद्योगिक पूँंजी निवेश को प्रोत्साहन, निजी क्षेत्र के सहयोग से अधोसंरचनात्मक सुविधाओं जैसे शुष्क बन्दरगाह, हवाई, रेल, सड़क, सम्पर्क, फ्लाई ओवर्स पूलों आदि का सुधार तथा विकास, अनिवासी भारतीयों सहित सीधे विदेशी निवेश को प्रोत्साहन, प्रत्येक जिलों में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के साथ शीत गृहों का विकास करते हुए भण्डारण क्षमता का विकास सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रानिक्स, दूर संचार एवं कम्प्यूटर के क्षेत्रों का विकास, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की प्रदेश में स्थापना मानव संसाधनों का विकास एवं उपयोग उद्योगों में गुणवत्ता तथा उत्पादकता को प्रोत्साहित करने के लिए तथा तकनीकी विकास हेतु राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना तथा उनका लाभ स्थानीय स्तर पर लाना, उद्योगों की समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर निराकरण तथा उद्योगों की स्थापना संबंध प्रक्रियाओं का सरलीकरण तथा इसके लिए प्रशासनिक सुधार आदि को शामिल किया गया।

 

राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2010 तक औद्योगिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दीर्घकालिक औद्योगिक विकास नियोजन किया गया जिसके लिए वर्ष 2001 में प्रदेश का सकल घरेलु औद्योगिक उत्पाद जो लगभग 5500 करोड़ रूपये था। उसे वर्ष 2010 में दुगना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। औद्योगिक विकास नियोजन में प्रदेश में अनुकुलतम् औद्योगिक विकास को विशेष महत्व दिया गया जिसके लिए, प्राकृतिक संसाधन, उपलब्ध आधारभूत संरचना, अनुकूलतम् स्थानीयकरण तथा उत्पत्ति के साधनों के उपलब्धता के अनुरूप औद्योगिक नियोजन की नीति निर्धारित की गयी। 2010 तक छत्तीसगढ़ के औद्योगिक विकास के लिए निर्धारित लक्ष्यों में आधारभूत क्षेत्रों के विकास के लिए वृहद विनियोग को आकर्षित करने, राज्य को पाॅवर हब के रूप में परिवर्तित करने तथा स्थानीयकरण की आवश्यकता के अनुरूप स्थानीय स्तर पर औद्योगिक विकास में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना था। उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों में ध्यान में रखते हुए औद्योगिक विकास के लिए निर्धारित नीतियों में संगठित औद्योगिक विकास सुदृढ़ आधारभूत संरचना तथा मार्गदर्शक प्रणाली का निर्माण, प्रतियोगी तथा विकासशील लघु उद्योगों की स्थापना तथा प्रेरणात्मक मार्गदर्शक नीतियों के निर्माण को छत्तीसगढ़ पर औद्योगिक विकास का लक्ष्य निर्धारित किया गया। औद्योगिक नीति के अंतर्गत सरकार द्वारा सुदृढ़ मार्गदर्शक प्रणाली के विकास का प्रावधान भी किया गया जिसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ में स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप उद्योगों का विकास करना था साथ ही निजी क्षेत्रों को भी स्थानीय स्तर पर औद्योगिक विकास में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना था। उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों में ध्यान में रखते हुए औद्योगिक विकास के लिए निर्धारित नीतियों में संगठित औद्योगिक विकास, सुदृढ़ आधारभूत संरचना तथा मार्गदर्शक प्रणाली का निर्माण, प्रतियोगी तथा विकासशील लघु उद्योगों की स्थापना तथा प्रेरणात्मक मार्गदर्शक नीतियों के निर्माण को छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नीतियों में शामिल किया गया।

 

संगठित एवं नियोजित औद्योगिक विकास के लिए अनुसंधान के माध्यम से पाँच देशों का चयन किया गया तथा इन क्षेत्रों में विनियोजन के लिए विनियोजकों को आकर्षित करने की नीति बनाई गयी। इस नीति निर्माण में उन प्रावधानों को भी शामिल किया गया जो उत्पाद को गुणवत्ता तथा लागत के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार उत्पादन निश्चित करते हो।

 

 

औद्योगिक विकास के लिए खुद सुदृढ़ आधारभूत संरचना तथा मार्गदर्शक प्रणाली के निर्माण के लिए सार्वजनिक निजी साझेदारी औद्योगिक विकास के लिए अनुकूलतम वातावरण निर्माण का प्रावधान किया गया उक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार ने समष्टिगत अर्थशास्त्र के नियमों का निर्धारण सार्वजनिक हितों के अनुरूप प्रशासनिक नियमों एवं नीतियों का निर्धारण, औद्योगिक बस्तियों के निर्माण के लिए बजट के अनुरूप ऋण सुविधा सार्वजनिक तथा निजी साझेदारी के अनुरूप पूँजी विनियोजन प्रावधान तथा सुदृढ़ मानवीय संसाधन विकास के लिए प्रावधान किया गया प्रदेश के लघु उद्योगों के प्रतियोगी विकास के लिए प्रदेश में कुशल श्रमिकों के विकास के लिए प्रावधान किया गया जिसके अंतर्गत प्रदेश में औद्योगिक प्रशिक्षण हेतु संस्थाओं की स्थापना एवं विस्तार तथा प्रदेश में कुशल एवं स्वस्थ श्रम बाजार के विकास हेतु प्रावधान किया गया। प्रदेश में कुशल साहसियों के विकास के लिए भी राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं का प्रावधान किया गया इस नीति के प्रमुख उद्देश्य प्रदेश में कुशल एवं स्वस्थ औद्योगिक विकास का आधार बनाना था। नीतियों के निर्माण के समय ये भी देखा गया है प्रदेश में ऐसी संस्थाओं का अभाव है जो साहसियों को औद्योगीकरण के लिए उचित मार्गदर्शन दे अतः प्रदेश में ऐसी संस्थाओं के स्थापना तथा विकास के प्रावधान किया गया जो सामाजिक स्तर पर आवश्यकताओं के अनुरूप औद्योगिक विकास में साहसियों का सहयोग करें।

 

संगठित औद्योगिक विकास के लिए चयनित उद्योगों में कृषि उत्पाद आधारित इकाइयाँ, पशुपालन तथा उत्पाद, उर्वरक, मछलीपालन, वन आधारित औद्यागिक इकाईयाँ दवाईयाँ हर्बल उत्पाद, लौह एवं इस्पात उद्योग, सीमेण्ट उद्योग एल्युमिनियम तथा कोयला आधारित इकाइयाँ, रासायनिक उद्योग, रत्न एवं आभूषण उद्योग, जनानांकीय उद्योग, हेण्डलूम तथा हेण्डीक्राफ्ट उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, बायो तकनीकी, ऊर्जा उत्पादन एवं वितरण, उद्योगों के विकास के लिए सहायक रोड, ट्रान्सपोर्टेशन तथा वेयर हाउसिंग उद्योगों की आवश्यकतानुरूप शहरीकरण तथा जल से संबंधित उद्योगों को शामिल किया गया इसके अतिरिक्त पर्यावरण अनुकूल पर्यटन का विकास तथा फिल्म सिटी के निर्माण के लक्ष्यों को भी शामिल किया गया।

 

प्रदेश में औद्योगीकरण के अनुरूप वातावरण के निर्माण के लिए उचित प्रशासनिक व्यवस्था हेतु प्रावधान किया गया। उद्योगों की स्थापना तथा विकास के लिए सम्पूर्ण वैधानिक कार्यवाही की पूर्ति 90 दिनों के भीतर करने का प्रावधान किया गया जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण कार्यालयीन क्रियाओं का सम्पादन संसाधनों के आबंटन निश्चित करने के लिए नियमन निर्धारित किया गया। उक्त कार्यों को पूर्ण करने के लिए राज्य विनियोग प्रर्वतन बोर्ड का गठन किया गया जो राज्य के मुख्यमंत्री के अधीन कार्य करता है। इस संस्था के द्वारा 20 करोड़ तथा उससे अधिक पूँंजी विनियोग की दशा में औद्योगिक संस्था के स्थापना के कार्यों का सम्पादन किया जाता है। राज्य सरकार के निर्देशानुसार राज्य विनियोग प्रवर्तन बोर्ड उद्योगों को 5 हेक्टेयर तक भूमि 30 दिनों के अवधि में उपलब्ध कराने का भी कार्य करती है। प्रदेश में औद्योगिक विकास को उचित दिशा देने तथा सुदृढ़ आधारभूत संरचना के निर्माण छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक संरचना विकास निगम ;ब्प्क्ब्द्ध का गठन किया गया है। प्रदेश में सुदृढ़ औद्योगिक बस्तियों के निर्माण के लिए राज्य औद्योगिक विकास निगम का गठन किया गया है। प्रदेश में औद्योगिक विकास के निर्धारित नीतियों का प्रभावशाली क्रियान्वयन प्रदेश के औद्योगिक विकास को नई दिशा देगा जो प्रदेश के विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा।

 

संदर्भ ग्रंथ

1.                 छत्तीसगढ़ वृहद् संदर्भ - संजय त्रिपाठी एंव श्रीमति

2.                 चंदन त्रिपाठी

3.                 छत्तीसगढ़ ज्ञानकोष -हीरालाल शुक्ल

4.                 छत्तीसगढ़ की नैसर्गिक संपदा जल, जंगल, और जमीन -

5.                 जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर

6.                 छत्तीसगढ़ का भूगोल - डाॅ. किरण गजपाल

7.                 छत्तीसगढ़ राज्य की औद्योगिक नीतियाँ (2001-2006) -

8.                 छत्तीसगढ़ सरकार

 

Received on 15.05.2012

Revised on 25.06.2012

Accepted on 20.07.2012     

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Research J.  Humanities and Social Sciences. 3(3): July-September, 2012, 366-368